भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 28

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन

पाण्डु और विदुर की उत्पत्ति से देश का बड़ा मंगल हुआ। पृथ्वी में असीम अन्न पैदा होने लगा। उनमें सरसता और शक्ति विशेष रुप से आ गयी, वर्षा ठीक समय से होने लगी। वृक्ष फल-फूल से लद गये, पशु-पक्षी प्रसन्नतापूर्वक विचरने लगे। फूलों में अपूर्व सुगन्ध और फलों में अनोखा स्वाद आ गया। चारों ओर कलाकार, विद्धान् और सदाचारियों की वृद्ध होने लगी। चोर-डाकुओं का भय मिट गया। किसी के मन में भी पाप नहीं आता था। सर्वत्र यज्ञ-यागादि पुण्यकर्म होते रहते थे। अभिमान, क्रोध और लोभ कम हो गया था। सब लोग त्याग करके दूसरों को संतुष्ट रखते थे। वहाँ कोई कंजूस या विधवा स्त्री नहीं थी। सबका घर अतिथियों के लिये खुला रहता था। भीष्म ने बचपन से ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का बड़ा ध्यान रखा था। वे जवान होते-होते सब शस्त्रों में पारंगत हो गये। विशेष करके पाण्डु धनुष युद्ध में बड़े निपुण थे, धृतराष्ट्र शरीर बल में और विदुर धर्मनीति में। वयस्क होने पर भीष्म ने पाण्डु को ही राजसिंहासन पर अभिषिक्त किया। धृतराष्ट्र अंधे थे और विदुर दासीपुत्र थे, इसलिये धर्मत: वे राज्य के अधिकारी नहीं माने गये।

भीष्म ने तीनों की सम्मति लेकर उनका विवाह कर दिया। धृतराष्ट्र का विवाह गान्धारी से हुआ, पाण्डु का विवाह मद्रराज की कन्या शल्य की बहिन माद्री से और श्रीकृष्ण की बुआ कुन्ती से हुआ। यदुवंशियों की एक सर्वगुण-सम्पन्न दासी कन्या के साथ विदुर का विवाह हुआ। तीनों ही सुखपूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करने लगे और भीष्म उनकी ओर दृष्टि रखते हुए शान्तभाव से रहने लगे।

समय पर धृतराष्ट्र के सौ पुत्र हुए। वे एक-से-एक बढ़कर वीर थे। भला ऐसा कौन भारतीय होगा जिसने दुर्योधन और दु:शासन का नाम न सुना हो। महाराज पाण्डु के वीर्य से कोई संतान नहीं हुई। उनका स्वभाव बड़ा विचित्र था। इन्हें शिकार खेलने में बड़ा मजा आता। ये प्राय: पर्वतों में ही रहते, परंतु यह व्यसन वास्तव में बड़ा बुरा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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