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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोकबहुत-से लोग अपने ओंठ दाँतों तले दबाकर ताल ठोंकते हुए युद्ध के लिये तैयार हो गये: बहुतों के शस्त्रास्त्र शीघ्रता के मारे गिर पड़े और उनकी झनझनाहट से दिशाएँ भर गयीं। घोड़े, हाथी एवं रथों पर सवार होकर लोग भीष्म को घेरने के लिये दौड़े। उस समय भीष्म से अपमानित होने के कारण सबकी भौंहें टेढ़ी हो गयी थीं, सबकी आँखें लाल हो गयी थीं। ऐसा मालूम होता था कि ये सब-के-सब भीष्म को पीने के लिये ही दौड़े जा रहे हैं। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ, परंतु भीष्म के सामने कोई ठहर न सका। सब-के-सब हार गये। सबके पीछे ललकारता हुआ शाल्व आया, परंतु अन्त में वह भी भीष्म से हार गया। भीष्म ने पकड़ लेने पर भी शाल्व का वध नहीं किया, दया करके उसे छोड़ दिया। शाल्व अपने नगर को चला गया और वहाँ धर्मपूर्वक राज्य करने लगा। सभी राजा अपनी-अपनी राजधानी को लौट गये। भीष्म अपने रथ पर तीनों कन्याओं को लेकर वन, नदी और पहाड़, वृक्षों से पूर्ण बीहड़, मैदानों को लाँघते हुए हस्तिनापुर को लौटे। रास्ते में उन तीनों कन्याओं के प्रति उनके मन में यह भाव था कि ये तीनों मेरी छोटी बहिन के समान हैं, पुत्री के समान हैं और पुत्रवधू के समान हैं। उन्होंने हस्तिनापुर में आकर वे कन्याएँ विचित्रवीर्य को सौंप दी और माता सत्यवती से सलाह लेकर उनके विवाह का उद्योग करने लगे। तीनों लड़कियों में से काशीराज की सबसे बड़ी लड़की थी अम्बा, छोटी दो लड़कियों का नाम था अम्बिका और अम्बालिका। अम्बा ने भीष्म से कहा-'महात्मन्! आप बड़े धर्मज्ञ हैं, इसलिये आपसे अपने हृदय की बात कहने में मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं है। जब स्वयंवर में देश-देश के नरपति एकत्र हुए थे, तब मैंने वहाँ मन-ही-मन सौभपति महाराज शाल्व को अपना पति मान लिया था, अत: धर्मत: वही मेरे स्वामी हैं। मेरे पिता का भी यही विचार था, इसलिये अब आप ऐसी व्यवस्था कीजिये कि मेरे धर्म की हानि न हो।' अम्बा की बात सुनकर भीष्म सोचने लगे कि अब मुझे क्या करना चाहिये। उन्होंने वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर सलाह ली और अन्त में यही निश्चय किया कि अम्बा की जहाँ इच्छा हो, उसे वहीं जाना चाहिये। अम्बा से कह दिया गया कि तुम चाहो तो शाल्व के पास जा सकती हो। अम्बा शाल्व के पास चली गयी। अम्बिका और अम्बालिका से विचित्रवीर्य का विवाह हो गया। वे दोनों रानियों के साथ गृहस्थ्य-सुख का उपभोग करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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