भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 18

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक

भीष्म ने अम्बा के साथ दासी और बहुत-से वृद्ध ब्राह्मण कर दिये, उनके साथ वह यथासमय शाल्व के पास पँहुची। उसने जाकर शाल्व से कहा-' पुरुष् श्रेष्ठ! मैंने आपको पतिरुप से वरण किया है और आपने इस बात की स्वीकृति भी दी है, इसलिये अब आप मुझे ग्रहण कीजिये।' शाल्व ने मुस्कुराकर कहा- 'सुन्दरी! तुम पहले दूसरे के घर रह चुकी हो, इसलिये मैं तुम्हारे साथ विवाह नहीं कर सकता। भीष्म ने हाथ पकड़कर तुम्हें रथ पर बैठाया था। उन्होंने युद्ध में तुम्हें जीत लिया था। तुमने तत्काल उनका विरोध भी नहीं किया था। इसलिये मेरे-जैसा धर्मात्मा तुम्हें पत्नी नहीं बना सकता। तुम्हारी जहाँ इच्छा हो, भीष्म के पास या और कहीं बड़ी प्रसन्नता से जा सकती हो। अब जाओ, यहाँ रहने की कोई आवश्यकता नहीं।' अम्बा रोने लगी। उसने गिड़गिड़ाकर कहा-'राजन्! आपको ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये, भीष्म मुझे बलपूर्वक ले गये थे, परंतु उनके प्रति मेरे हृदय में कभी अनुराग का संचार नहीं हुआ और न तो उन्होंने ही कभी मुझे दूषित दृष्टि से देखा। मैं आपसे ही प्रेम करती हूँ, निर्दोष हूँ और आपकी शरण में आयी हूँ। भीष्म ने मुझे यहाँ। आने की आज्ञा दे दी है। उन्हें अपना विवाह करना भी नहीं है, उन्होंने मेरी बहिनों का विवाह अपने भाई के साथ किया है। मैं शपथपूर्वक कहती हूँ कि आपको छोड़कर मैं और किसी के साथ विवाह करना नहीं चाहती। मैं आपके प्रणय और प्रसाद की इच्छुक हूँ। आप मुझे स्वीकार कीजिये।' परंतु शाल्व ने उसकी एक न सुनी, उल्टे शाल्व ने अम्बा को ऐसी बातें समझायीं जिनसे उसके मन में बैठ गया कि सारा दोष भीष्म का ही है। वह बदला लेने की इच्छा से ऋषियों के आश्रम में गयी और वहाँ जाकर ऋषियों को अपना यह निश्चय कह सुनाया कि 'अब मैं किसी का आश्रय नहीं लुँगी। आजन्म ब्रह्मचारिणी रहकर कठिन-से-कठिन तप करुँगी। आप लोग केवल मुझे आश्रम में रहने की अनुमति दीजिये।' ऋषियों ने बहुत समझाया कि 'तुम अपने पिता के पास लौट जाओ।' परंतु वह लौटी नहीं, अपने हठ पर अड़ी रही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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