भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 16

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक

सत्यवती ने विचित्रवीर्य के विवाह के लिये भीष्म से कहा और आग्रह किया कि जहाँ तक हो सके शीघ्रातिशीघ्र विचित्रवीर्य का विवाह कर दिया जाय। भीष्म के लिये सत्यवती की आज्ञा वेदवचन के समान अलंघनीय थी। उन्होंने अपने पिता की प्रसन्नता के लिये साम्राज्य का त्याग किया था। आजीवन ब्रहमचर्य का व्रत लिया था तो स्वयं विवाह न करने पर भी माता की आज्ञा से भाई का विवाह करने के लिये वे चिन्तित हो गये। उन्हें पता चला कि काशी के राजा की अप्सरा के समान सुन्दरी तीन कन्याओं का स्वयंवर होने वाला है। उन्होंने अकेले ही रथ पर सवार होकर काशी की यात्रा की।

काशी के राजा के यहाँ अनेकों देश के नरपति एकत्र थे। वे बड़े उत्साह से स्वयंवर में उन कन्याओं को प्राप्त करने के लिये आये हुए थे। वे कन्याएँ भी वहीं उपस्थित थीं। सब राजाओं के वंश एवं गुणों का क्रमश: वर्णन हो रहा था। भीष्म को उस स्वयंवर में देखकर बहुत-से लोग भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें करने लगे। कोई कहता- 'अब तक इन्होंने विवाह नहीं किया तो इतनी अवस्था में क्यों विचलित हो गये? स्वयंवर में आने की क्या आवश्यकता पड़ी?' कोई कहता- 'इसने पहले जोश में आकर प्रतिज्ञा कर ली थी, अब जोश ठंडा पड़ गया, अब यह विवाह करना चाहता है।' दूसरे बोल उठे- 'तो अपनी प्रतिज्ञा तोड़ करके यह संसार के सामने मुँह कैसे दिखायेगा। अपनी क्या सफाई देगा।' कहावत है कि पापियों को सब जगह पाप ही सूझता है। इन राजाओं का मन कलुषित था। वे भीष्म पर भी अपने कलुष का आरोप कर रहे थे। उन्हें यह बात मालूम नहीं थी कि भीष्म अपनी बदनामी का तनिक भी ख्याल न करके अपनी विमाता की आज्ञा का पालन करने आये हैं। अपने लिये नहीं, अपने भाई के लिये यहाँ आये हैं: परंतु कुछ धर्मात्मा राजा ऐसे भी थे, जिन्हें भीष्म की प्रतिज्ञा का विश्वास था, जो जानते थे कि सूर्य और चन्द्रमा अपनी नियमित गति का परित्याग कर सकते हैं, परंतु भीष्म अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकते।

राजाओं की उपर्युक्त बातचीत सुनकर भीष्म को बड़ी हँसी आयी। उन्होंने सोचा, कन्याओं को तो ले ही चलना है, ये सब अपने बल के गर्व से बहुत हँस रहे हैं तो इन्हें इसका कुछ मजा क्यों न चखाया जाय। उन्होंने बलपूर्वक तीनों कन्याओं को अपने रथ पर बैठा लिया और बड़ी निर्भयता के साथ गम्भीर स्वर से काशी नरेश एवं समस्त राजाओं से कहा-'भाई! अपने शास्त्रों में अनेकों प्रकार के विवाहों का उल्लेख है, उनमें ब्राहम, आर्ष, दैव आदि विवाह उत्तम कहे गये हैं। यहाँ सब वीर-ही-वीर इकट्ठे हुए हैं और कन्या के अधिकारी तो वीर एवं सत्पात्र ही होते हैं। इसलिये कन्याओं को मैंने अपने रथ पर बैठा लिया है, जिसे अपनी वीरता का अभिमान हो, जो वास्तव में इन कन्याओं को चाहता हो वह सामने आकर दो-दो हाथ देख ले। चाहे जय हो या पराजय, अपनी शक्ति परीक्षा तो कर ले, आगे देखा जायेगा।'

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः