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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोकसृष्टि बहुत विशाल है, इसमें एक-से-एक बढ़कर हैं। कोई बहुत बड़ा वीर हो जाय, फिर भी नहीं कहा जा सकता कि इससे बड़ा और कोई नहीं है। अरे वह तो इस सृष्टि में एक कीड़े-मकोड़े के बराबर है। एक ब्रह्माण्ड में एक सूर्य एक कण के समान है। एक सूर्य में एक पृथ्वी एक कण के समान है और एक पृथ्वी में ए स्वरुप पर मनुष्य, वह चाहे जितना बड़ा वीर क्यों न हो, एक कण से अधिक महत्ता नहीं रखता; परंतु वह अपने, अपनी सत्ता पर और अपने क्षणभंगुर विचार नहीं करता, इसी से फूला-फूला फिरता है। आख्रिर एक दिन चित्रांगद के जोड़ का वीर मिल गया। उसका नाम भी चित्रांगद ही था। वह गन्धर्व था। मनुष्य चित्रांगद बली था तो गन्धर्व चित्रांगद महाबली था। उससे युद्ध का कोई निमित्त भी नहीं था, केवल इतना ही बहाना था कि तुमने मेरा नाम क्यों रखा। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ, कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के तट पर दोनों ही वीर तीन वर्ष तक लगातार लड़ते रहे। अन्तत: मनुष्य चित्रांगद हार गये, गन्धर्व चित्रांगद की जीत हुई। जो अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं थे, उन्हीं का शरीर आज खून से सराबोर होकर जमीन में गिर पड़ा और गीध-कौओं ने उससे अपनी भूख मिटायी। चाहे जितना बड़ा सम्राट हो- जितना बड़ा वीर हो, अन्त में उसकी यही गति है। चित्रांगद की मृत्यु के पश्चात् सत्यवती की आज्ञा से विचित्रवीर्य राजसिंहासन पर बैठाये गये। अभी उनकी उमर कच्ची थी, वे बच्चे थे भीष्म बड़ी सावधानी से उनकी सँभाल रखने लगे और राजा के कारण किसी प्रजा को कष्ट न हो- इसका ध्यान रखने लगे। सत्यवती की बड़ी इच्छा थी कि मेरे पुत्र का विवाह हो जाय, घर में बहू आ जाय। बच्चे हो जाँय और मैं सुखी होऊँ। आशा भी कितनी दुरन्त है। शान्तनु- जैसे चक्रवर्ती पति मर गये, चित्रांगद- जैसा वीर पुत्र मर गया; परंतु अभी सत्यवती के मन में यह आशा है कि विचित्रवीर्य के पुत्रों से मैं सुखी हो जाऊंगी। धन्य है भगवान् की माया! इससे पार जाना सहज नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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