गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 186

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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तृतीय अध्याय

यह आसक्ति न प्राकृत और न आत्मीय है। बिल्कुल मूर्खता के वश में ही आसक्ति उत्पन्न हुई है। इन्द्रियों का काम ही है विषयों में बरतना और देखते रहना विषयों को। यदि आपसे यह पूछा जाये कि आपने जन्म लेने से लेकर अब तक अपने हाथ से कौन-कौन काम किये हैं और कहाँ-कहाँ गये हैं- इसकी लिस्ट बनाकर दीजिए तो आप बना सकेंगे? अरे, जिनकी गिनती याद ही नहीं, उनको आप कैसे बतायेंगे? एक सज्जन को तो अपने बच्चों तक की गिनती याद नहीं रहती। वे पहले गिनते हैं, तब हमको बताते हैं कि स्वामीजी, यह दसवें नम्बर की बेटी है, यह सत्रहवें नम्बर का बेटा है। ये सब जिन्दा हैं। बीच में कितने मर गये- यह उनको मालूम नहीं है। उन्हें अपने बेटों का भी पता नहीं है। उन्होंने चार-पाँच ब्याह किये होंगे तो किसी पत्नी का नाम भी याद नहीं होगा, लेकिन आसक्ति के पीछे मरे डोलते हैं। यह भ्रम ही है उनका और कुछ नहीं है।

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: ।
गुणा गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ॥[1]

प्रकृति के गुण में संविद् होना माने उनमें अटक जाना। अच्छा, आप यही बताइये कि आपके मन में अब तक सात्विक अथवा राजसिक वृत्तियाँ कितनी बार आ चुकी हैं? यह आप बता सकेंगे? अरे एक दिन में कितनी बार ये वृत्तियाँ आती हैं- यह भी आप नहीं बता सकते। आप प्रयास करके भी यह नहीं बता सकते कि आपके मनने क्या-क्या आकार ग्रहण किये हैं, आँख ने क्या-क्या शब्द सुने हैं। यह मूढ़ता नहीं तो और क्या है? याद कीजिए गोस्वामी तुलसीदास जी के इस पद को-

ऐसी मूढ़ता या मनकी।
परिहरि रामभगति सुरसरिता आस करत ओसकनकी।।

जो अपना आत्मदेव है और जिसका कभी लोप ही नहीं होता, उसे छोड़कर लोग इन उड़ने वाली, पड़ने वाली, गिरने वाली, आने वाली, जानेवाली, बदलने वाली बहुरूपियों, वेश्याओं तथा कुलटाओं को समझते हैं कि ये हमारे साथ आकर चिपकती हैं और हम उनसे आसक्ति करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 28

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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