गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते । व्याख्या- काम पाँच स्थानों में दीखता है- 1. विषयों में[1], 2. इन्द्रियों में, 3. मन में, 4. बुद्धि में और 5. अहम् (जड़-चेतन के तादात्म्य) में[2]। इन पाँच स्थानों में दीखने के कारण ये पाँचों काम के वासस्थान कहे गये हैं। मूल में काम ‘अहम्’ में ही रहता है[3]। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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