गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 79

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥40॥

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इस कामना के वास-स्थान कहे गये हैं। यह कामना इन (इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि) के द्वारा ज्ञान को ढककर देहाभिमानी मनुष्य को मोहित करती है।

व्याख्या- काम पाँच स्थानों में दीखता है-

1. विषयों में[1],

2. इन्द्रियों में,

3. मन में,

4. बुद्धि में और

5. अहम् (जड़-चेतन के तादात्म्य) में[2]

इन पाँच स्थानों में दीखने के कारण ये पाँचों काम के वासस्थान कहे गये हैं। मूल में काम ‘अहम्’ में ही रहता है[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (गीता 3।34)
  2. (गीता 2।59)
  3. (गीता 3।42-43)

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