गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 80

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥41॥

इसलिये हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! तू सबसे पहलीे इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान् पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल।

व्याख्या- संसार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं है- यह ज्ञान है। सब कुछ भगवान् ही हैं-यह विज्ञान है। काम साधक को न तो ‘ज्ञान’ प्राप्त करने देता है, न ‘विज्ञान’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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