गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ । व्याख्या- संसार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं है- यह ज्ञान है। सब कुछ भगवान् ही हैं-यह विज्ञान है। काम साधक को न तो ‘ज्ञान’ प्राप्त करने देता है, न ‘विज्ञान’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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