गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 78

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च ।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृम् ॥38॥

जैसे धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढका जाता है तथा जैसे जेर से गर्भ ढका रहता है, ऐसे ही उस कामना के द्वारा यह (ज्ञान अर्थात विवेक) ढका हुआ है।

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा ।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥39॥

हे कुन्तीनन्दन! इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के कामनारूप नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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