विषय सूची 1 गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास 1.1 तीसरा अध्याय 2 टीका टिप्पणी और संदर्भ 3 संबंधित लेख गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास तीसरा अध्याय धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च । यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृम् ॥38॥ जैसे धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढका जाता है तथा जैसे जेर से गर्भ ढका रहता है, ऐसे ही उस कामना के द्वारा यह (ज्ञान अर्थात विवेक) ढका हुआ है। आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा । कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ॥39॥ हे कुन्तीनन्दन! इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के कामनारूप नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है। टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख गीता प्रबोधनी -रामसुखदास अध्याय पृष्ठ संख्या अध्याय 1 1 अध्याय 2 18 अध्याय 3 58 अध्याय 4 82 अध्याय 5 104 अध्याय 6 118 अध्याय 7 141 अध्याय 8 158 अध्याय 9 173 अध्याय 10 191 अध्याय 11 213 अध्याय 12 242 अध्याय 13 255 अध्याय 14 280 अध्याय 15 297 अध्याय 16 315 अध्याय 17 330 अध्याय 18 345 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः