गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: । व्याख्या- यह सिद्धान्त है कि संसार (पदार्थ और क्रिया) से अलग होने पर ही संसार का ज्ञान होता है और परमात्मा से एक होने पर ही परमात्मा का ज्ञान होता है। कारण यह है कि वास्तव में हम संसार से अलग और परमात्मा से एक हैं। तत्त्वज्ञ महापुरुष गुण-विभाग (पदार्थ) और कर्म-विभाग (क्रिया) से सर्वथा अलग होने पर यह जान लेता है कि सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं। तात्पर्य है कि सम्पूर्ण क्रियाएँ संसार में ही हो रही हैं। स्वरूप में कभी कोई क्रिया नहीं होती। प्रकृतेर्गुणसम्मूढा: सज्जन्ते गुणकर्मसु । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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