गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति: । व्याख्या-अपने कर्तव्य का पालन करने से अर्थात दूसरों के लिये निष्काम भाव से कर्म करने से अपना तथा प्राणि मात्र का हित होता है। परन्तु अपने कर्तव्य का पालन न करने से अपना तथा प्राणि मात्र का अहित होता है। कारण कि शरीर की दृष्टि से तथा आत्मा की दृष्टि से भी मात्र प्राणी एक हैं, अलग-अलग नहीं। मनुष्य शरीर केवल कल्याण-प्राप्ति के लिये ही मिला है। अतः अपना कल्याण करने के लिये कोई नया काम करना आवश्यक नहीं है, प्रत्युत जो काम करते हैं, उसे ही फलेच्छा और आसक्ति का त्याग करके दूसरों के हित के लिये करने से हमारा कल्याण हो जायगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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