गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
तीसरा अध्याय
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण: । व्याख्या- जो कर्म दूसरों के लिये नहीं किये जाते, प्रत्युत अपने लिये किये जाते हैं, उन कर्मों से मनुष्य बँध जाता है। अतः साधक को ये तीन बातें स्वीकार कर लेनी चाहिये- 1. शरीर सहित कुछ भी मेरा नहीं है, 2. मुझे कुछ भी नहीं चाहिये, और 3. मुझे अपने लिये कुछ भी नहीं करना है। पहली बात स्वीकार करने से दूसरी बात सुगम हो जायगी और दूसरी बात स्वीकार करने से तीसरी बात सुगम हो जायगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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