गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 6

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

पहला अध्याय

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तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥14॥

उसके बाद सफेद घोड़ों से युक्त महान रथ पर बैठे हुए लक्ष्मीपति भगवान श्रीकृष्ण और पाण्डु पुत्र अर्जुन ने भी दिव्य शंखों को बड़े जोर से बजाया।

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय: ।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: ॥15॥

अन्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य नामक तथा धनञ्जय अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया और भयानक कर्म करने वाले वृकोदर भीम ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर: ।
नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥

कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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