गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 7

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

पहला अध्याय

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काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित: ॥17॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्चे सर्वश: पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक्पृथक् ॥18॥

हे राजन! श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी तथा धृष्टद्युम्न एवं राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों के पुत्र तथा लम्बी-लम्बी भुजाओं वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु-इन सभी ने सब ओर से अलग-अलग (अपने-अपने) शंख बजाये।

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् ।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ॥19॥

और (पाण्डव सेना के शंखो के) उस भयंकर शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुँजाते हुए अन्याय पूर्वक राज्य हड़पने वाले दुर्योधन आदि के हृदय विदीर्ण कर दिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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