गीता प्रबोधनी -रामसुखदास पृ. 5

गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास

पहला अध्याय

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अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ॥11॥

दुर्योधन बाह्यदृष्टि से अपनी सेना के महारथियों से बोला-आप सब-के-सब लोग सभी मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह दृढ़ता से स्थित रहते हुए निश्चितरूप से पितामह भीष्म की ही चारों ओर से रक्षा करें।

तस्य सञ्जनयन्हर्ष कुरुवृद्ध: पितामह: ।
सिंहनादं विनद्योच्चै: शख्ङं दध्मौ प्रतापवान् ॥12॥

उस (दुर्योधन) के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए कौरवों में वृद्ध प्रभावशाली पितामह भीष्म ने सिंह के समान गरजकर जोर से शंख बजाया।

तत: शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥

उसके बाद शंख और भेरी (नगाड़े) तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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