गीता प्रबोधनी -स्वामी रामसुखदास
दूसरा अध्याय
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वश: । व्याख्या- अब भगवान सांख्ययोग की दृष्टि से कहते हैं; क्योंकि परिणाम में कर्म योग तथा सांख्ययोग एक ही हैं[1]। लोग जिस परमात्मा की तरफ से सोये हुए हैं, वह तत्त्वज्ञ महापुरुष और सच्चे साधकों की दृष्टि में दिन के प्रकाश के समान है। सांसारिक लोगों का तो पारमार्थिक साधक के साथ विरोध होता है, पर पारमार्थिक साधक का सांसारिक लोगों के साथ विरोध नहीं होता- ‘निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध।।’[2]। सांसारिक लोगों ने तो केवल संसार को ही देखा है, पर पारमार्थिक साधक संसार को भी जानता है और परमात्मा को भी। संसार में रचे-पचे लोग सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति में ही अपनी उन्नति मानते हैं; परन्तु तत्त्वज्ञ महापुरुष और सच्चे साधकों की दृष्टि में वह रात के अन्धकार की तरह है, उसका किंचिन्मात्र भी महत्त्व नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज