गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 59

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण


गीतोपदेश के पश्चात् भागवत धर्म की स्थिति
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“गरीयान खलु काल चक्रः” उक्ति के अनुसार समय ने पलटा खाया और एक नयी क्रान्ति पैदा कर दी। सन्त-महात्माओं का प्रादुर्भाव विकट समय में ही होता है जो जनता को कर्तव्य एवं धर्म के क्षेत्र में अनुप्राणित करते रहे हैं। 5 अगस्त सन् 1920 ई. को लोकमान्य तिलक की मृत्यु के पश्चात् देश के राजनीतिक आन्दोलन का नेतृत्व महात्मा गाँधी ने सँभाला जो सन् 1947 ई. तक उनके हाथ में रहा। महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को नया मोड़ दिया।

स्वामी विवेकानन्द के ब्रह्मोपदेश की, महात्मा अरविन्द के हठयोग व राजयोग की, स्वामी रामतीर्थ के आत्म-दर्शन की व भारत को स्वतंत्र करने के लिए स्वार्थों की बली चढ़ाने की, महर्षि रमण के आत्म-चेतना व मोह माया से मुक्त होने के उपदेश की, योगीराज गम्भीरनाथ द्वारा बंगाल के सशस्त्र राजनीतिक क्रान्तिकारियों की आध्यात्मिक पिपासा को तृप्तकर आत्म-शान्ति का दर्शन कराने की, लोकमान्य तिलक के वैदिक-धर्म व वैदिक-संस्कृति द्वारा स्वदेश, स्वराज्य व स्वधर्म की प्रतिष्ठा रखने की छाप महात्मा गांधी पर पूर्णरूपेण लग चुकी थी।

महात्मा गाँधी परम भागवत वैष्णव सन्त थे, रामकृष्ण के भक्त तथा सत्य योगी थे। उन्होंने शारीरिक तथा मानसिक पराधीनता का नाश कर भौतिक जगत में आध्यात्मिक क्रान्ति उत्पन्न की, वह भक्त, ज्ञानी, और कर्मयोगी थे। गांधी जी ने राम-भक्ति के बल पर स्वराज्य की साधना की और अहिंसात्मक सत्याग्रह आन्दोलन का संचालन हठ-योग पूर्वक किया। वह पातन्जलि-योग, योगवाशिष्ठ, हठयोग-प्रदीपिका, योगतारावली, योगबीज, योग-कल्पद्रुम, योग-ग्रन्थों के तथा श्रीमद्भागवत व गीता के मर्मज्ञ व तत्त्वज्ञ थे।

उनका कहना था कि बिना दुःख के कोई देश उन्नत नहीं हो सकता, मृत्यु से जीवन मिलता है, स्वराज्य की प्राप्ति होना केवल भगवान की कृपा से व सत्य सम्भव है, उनका यह पूर्ण विश्वास था कि बिना राम की सहायता के स्वराज्य नहीं मिल सकता और रामराज्य के बिना जनता सुखी, शान्त व सन्तुष्ट नहीं हो सकती। महात्मा गांधी सत्य को ही भगवान का नाम समझते थे, उन्होंने अखण्ड अनादि नित्य-सत्य की उपासना की और अत्याचार तथा दासता के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन किया जिसके आगे इन तीनों विगुणों को नतमस्तक होना पड़ा और परिणाम स्वरूप 15 अगस्त सन 1947 ई. को अंग्रेज़ों ने भारत के स्वतन्त्र शासन की बागडोर राष्ट्रीय महासभा के हाथों में देकर भारत को स्वतन्त्र घोषित कर अपने स्वदेश इँगलिस्तान को प्रस्थान किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
- गीतोपदेश के पश्चात भागवत धर्म की स्थिति 1
- भूमिका 66
- महर्षि श्री वेदव्यास स्तवन 115
- श्री गणेश वन्दना 122
1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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