गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 982

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-17
श्रद्धात्रय-विभाग-योग
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(1)
अर्जुन उवाच-

ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य
यजन्ते श्रद्धयान्विता:।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण
सत्त्वमाहो रजस्तम:॥

अर्जुन ने कहा-

शास्त्रविधि का न पालन कर
यजन किन्तु श्रद्धा से करते।
सत्त्व-रज-तम निष्ठा में
इस निष्ठा[1] को कृष्ण! क्या कहते?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रद्धा: भावना

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
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1. अर्जुन विषाद-योग 126
2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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