गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 653

गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण

अध्याय-9
राजविद्या-राजगुह्य-योग
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श्रीभगवान उचाव-


(1)
इदं तु ते गुह्यतमं
प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं
यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥

भगवान कृष्ण ने कहा-

सविज्ञान[1] गुह्यतम ज्ञान वो
कहता अब अनसूयमान[2] को।
होगा मुक्त जान तू जिसको
हे पार्थ! सभी अशुभादि से तो।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सविज्ञान-ज्ञान अध्याय 7 श्लोक 2 में “ज्ञान-विज्ञान” का अर्थ देखो।
  2. वह व्यक्ति जो श्रद्धालु व जिज्ञासु हो और छिद्रान्वेशी न हो। (अध्याय 3 श्लोक 31; व अध्याय 4 श्लोक 34 देखो।)

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2. सांख्य-योग 171
3. कर्म-योग 284
4. ज्ञान-कर्म-संन्यास योग 370
5. कर्म-संन्यास योग 474
6. आत्म-संयम-योग 507
7. ज्ञान-विज्ञान-योग 569
8. अक्षर-ब्रह्म-योग 607
9. राजविद्या-राजगुह्य-योग 653
10. विभूति-योग 697
11. विश्वरूप-दर्शन-योग 752
12. भक्ति-योग 810
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभाग-योग 841
14. गुणत्रय-विभाग-योग 883
15. पुरुषोत्तम-योग 918
16. दैवासुर-संपद-विभाग-योग 947
17. श्रद्धात्रय-विभाग-योग 982
18. मोक्ष-संन्यास-योग 1016
अंतिम पृष्ठ 1142

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