गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
अध्याय-14
गुणत्रय-विभाग-योग
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(1)
श्रीभगवान उवाच-
परं भूय: प्रवक्ष्यामि
ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् ।
यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे
परां सिद्धिमितो गता: ॥
भगवान कृष्ण ने कहा-
ज्ञान-परमोत्तम[1] ज्ञान नाम में
तुम्हें बताता अब वो मैं।
जिसे जान मुनिजन यथार्थ में
पा चुके परम सिद्धि इस लोक में।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रकृति के सत्त्व-रज-तम गुणों के लक्षणों का ज्ञान सबसे उत्तम ज्ञान बताया गया है
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