गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण
(2) अक़बर से औरंगज़ेब तक का समय :- सन् 1556 से सन् 1707 ई. तक, 151 वर्ष का समय है :- सन् 1556 ई. में अक़बर दिल्ली के तख़्त पर बैठा। अकबर से पहले हुमायूँ के शासनकाल तक हिन्दू संस्कृति का प्रभाव इस्लाम पर काफ़ी हो चुका था। मुहम्मद तुग़लक़ सन्त कबीर के, बाबर गुरुनानक के, हुँमायु सन्त एकनाथ के, शेरशाह सूरी व बंगाल का शासक हुसैन शाह श्रीपरशुराम देवाचार्य के आध्यात्म व यौगिक चमत्कारों से प्रभावित होकर इन महात्माओं के भक्त हो गए थे। अक़बर एक योग्य व विचारशील शासक था। भारत की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक महानता को देखकर वह इस निष्कर्ष पर पहुँच गया था कि यदि मुस्लिम राज्य को या मुस्लिम हितों को भारत में सुरक्षित व कायम रखना है तो मुसलमान हिन्दुओं से भिन्न नहीं रह सकते उनको हिन्दू धर्म, हिन्दू समाज, व हिन्दू संस्कृति के साथ हिल मिलकर रहना होगा अन्यथा मुस्लिम राज्य को या मुस्लिम हितों को भारत में सुरक्षित रखना सम्भव नहीं होगा। इसी विचार से प्रभावित व प्रेरित होकर अकबर ने भागवत धर्म को या नारायणी धर्म को स्वीकार किया और मुस्लिम जनता की समझ में आने के लिए इसका अनुवाद फ़ारसी भाषा में कर इसका नाम “दीन-ए- इलाही” रक्खा। इस प्रकार अक़बर पहला मुस्लिम शासक था जिसने भागवत-धर्म को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया। वह राम और कृष्ण की पूजा करता था, तिलक लगाता था, उसने सूर्य व अग्नि की पूजा को अनिवार्य बनाया और लोगों को आपस में मिलते समय “अल्लाहो अक़बर” अर्थात् “वासुदेवः सर्वमिति” का उच्चारण कर एक दूसरे का अभिवादन करने का आदेश दिया और मुल्ला मौलवियों के धार्मिक नियन्त्रण से अपने को मुक्त कर दिया। फ़ादर मैनसरेट नाम का ईसाई पादरी जो अक़बर के दरबार में रह चुका था उसने अपनी “कमेंन्ट्री” नाम की पुस्तक में लिखा है कि-“अक़बर ने यह घोषणा कर दी थी कि वह मुसलमान नहीं है और न मुहम्मद के धर्म को मानता है; वह केवल उस परमात्मा को मानता है जिसका कोई प्रतिद्वन्दी नहीं है। अक़बर न नमाज़ पढ़ता था, न रमज़ान के दिनों में रोज़े रखता था अपितु मुहम्मद का उपहास किया करता था।” डा. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक “अक़बर द ग्रेट” में लिखा है कि - “अक़बर सभी धर्मों को मानने वाले सन्तों और धार्मिक व्यक्तियों की ओर समान ध्यान देता था और हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई संस्थाओं को उसी प्रकार अनुदान दिया करता था जिस तरह वह मुस्लिम संस्थाओं को दिया करता था।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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