आज बन क्रीड़त श्यामा श्याम।
सुभग बनी निशि शरद चाँदनी रुचिर कुंज अभिराम।।
खण्डन अधर करत परिरंभन ऐंचत जघन दुकूल।
उर नख पात तिरीछी चितर्वान दंपति रस समतूल।।
वे भुज पीन पयोधर परसत वामदृशा पिय हार।
वसननि पीक अलक आकर्षत समर श्रमिक सत मार।।
पल पल प्रवल चौंप रस-लंपट अति सुन्दर सुकुमार।
(जै श्री) हित हरिवंश आज तृण टूटत हौं बलि विंशद विहार।।
सुन्दर पुलिन सुभग सुखदायक।
नव-नव घन अनुराग परस्पर खेलत कुँवर नागरी-नायक।।
शीतल हंस सुता रस-वीचिनि परस पवन सीकर मृदु बरसत।
बर मन्दार कमल चंपक कुल सौरभ सरस मिथुर मन हरसत।।
सकल सुबंग विलास परावधि नाचत नवल मिले सुर गावत।
मृगज, मयूर, मराल, भ्रमर, कपि अद्भुत कोटि मदन शिर नावत।।
निर्मित कुसुम सैन मधु पूरित भाजन-कनक निकुंज विराजत।
रजनी-मुख सुख-रासि परस्पर सुरत समर दोऊ दल साजत।।
विट-कुल-नृपति किशोरी कर धृतबुधि-बल नीवी बंधन मोचत।
नेति-नेति वचनामृत बोलत प्रणय-कोप प्रीतम नहिं सोचत।।