श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
वहाँ से विदा होकर वैश्य सीधा हित प्रभु के पास पहुँचा और सम्पूर्ण द्रव्य उनको भेंट करके उनसे शिष्य बनाने की प्रार्थना की। हित-प्रभु ने उसकी उत्कट इच्छा देखकर उसको मन्त्र तो दे दिया, किन्तु उसके द्रव्य को स्वीकार नहीं किया। भगवत मुदित जी ने लिखा है:-
निर्लोभता का दूसरा उदाहरण गंगाबाई, यमुनाबाई के चरित्र से मिलता है। इन दोनों को मनोहर दास नाम के एक गायक ने पाला था। मरते समय वह गाड़ कर रखे हुये तीस हजार रुपये इनको बतला गया। गंगाबाई, यमुनाबाई ने रुपये निकालकर श्री हितजी को भेंट करने चाहे, पर उन्होंने वे साधु-सेवा में लगवा दिये। श्रीहित हरिवंश को उच्चकोटि की कवि-प्रतिभा प्राप्त थी एवं इनकी रचनाओं की कोमल-कांत-पदावली के कारण इनको ब्रजभाषा का जयदेव कहा जाता है। ब्रजभाषा में इनके चौरासी पद ‘हित चतुरासी’ के नाम से तथा फुटकर पद ‘फुटकर वाणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका संस्कृत पर भी पूरा अधिकार था। संस्कृत में इनकी दो रचनाएं यमुनाष्टक एवं राधा-सुधा निधि, किंवा राधा-रस सुधा-निधि उपलब्ध हैं। दूसरी रचना को कुछ लोग श्री प्रबोधानंद सरस्वती कृत बतलाते हैं, वे सब इसको श्री हित हरिवंश-कृत बतलाती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (रसिक-अनन्य माल)
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