श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
प्रकट-सेवा
वेदैस्तंत्रैः पुराणैजँगति बहु विधा कृष्ण सेवा प्रदिष्टाः इसके साथ यह व्यवस्था भी दी हुई है, ‘अपने सेव्य स्वरूप के सामने न तो आँख बन्द करके ध्यान करना चाहिये और न प्राणायाम, अंगन्यास, करन्यास आदि कर्म ही करने चाहिये, क्योंकि प्रभु के समक्ष ध्यानादिक करने से उनमें सेव्य भाव तत्काल ही शिथिल हो जाता है और उनके प्रति ब्रह्म बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। शुद्ध प्रेम का प्रकाश केवल श्रीकृष्ण की परिचर्या से ही होता है, अन्य किसी साधन से नहीं।' न ध्यायेन्नेत्र युग्मं प्रभुवर पुरतः सन्निमील्य स्वकीयं, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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