हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 182

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
प्रकट-सेवा


“इस प्रकार प्रातःकालीन एवं मध्याह्न कालीन सेवा से निवृत्त होकर वह अपने परिजनों, अन्य वैष्णवों एवं अतिथियों के साथ भक्तिपूर्वक प्रभु का प्रसाद ग्रहण करता है। अवकाश के समय में अपने जीवन निर्वाह के कार्यों को भगवन्नाम का जप करता हुआ नीति पूर्वक करता है।’

‘अर्धयाम[1] दिन अवशिष्ट रहने पर वह सायं सेवा के लिये, गुण-गान करता हुआ, अपने प्रभु को पुनः उठाता है। युगल को विमल जल पान कराकर वह उनका नवीन श्रृंगार करता हैं एवं उनको कालोचित भोग-सामग्री एवं ताम्बूल अर्पण करता है। तदनंतर वह उनके सन्मुख स्वयं अथवा गुणी-जनों के द्वारा अनेक वाद्यों के सहित गान करता है या कराता है और प्रभु को सन्ध्याकालीन भोग अर्पण करके प्रेम पूर्वक उनकी सन्ध्या आरती करता है। तदनंतर प्रभु के सन्मुख समयोचित पदों का गान एवं नृत्य करके उनको शयन-भोग अर्पण करता है। शयन आरती के बाद उनको पुष्प-रचित शय्या पर शयन कराकर सेवापराधों के लिये क्षमा माँगता हुआ प्रेम पूर्वक प्रभु का चरण-संवाहन करता है।”

नित्य सेवा का यह वर्णन सम्प्रदाय के सेवा-ग्रन्थों से उद्धृत किया गया है। नित्य सेवा के अतिरिक्त नैमित्तिक सेवा भी है जो विशेष अवसरों पर विशेषता के साथ की जाती है। इसको उत्सव-सेवा भी कहते हैं। विशेष श्रृंगार एवं विशेष भोग-राग के द्वारा उत्सव-सेवा निष्पन्न होती है। श्री लाड़लीदास ने प्रधान उत्सव दस बतलाये हैं- फाग डोल, चंदन वसन, झूलन, शरदोत्सव, [2]पाटोत्सव, दीपमालिका, कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा, वनविहार, खिचरी उत्सव और बसंत।

दासी भाव से भावित होकर ही प्रकट सेवा करने का विधान है। ‘सेवा-विचार’ में इस भाव के उपासक को एक बात से सावधान कर दिया गया है। कहा है ‘श्री राधा किंकरी का भाव एक मानसिक धर्म है अतः सर्व साधारण के सामने न तो उसका वर्णन करना चाहिये और न उसका अनुकरण अपने शरीर पर धारण करना चाहिये। सब मुनिजनों ने भावना के अनुकूल सिद्धि मानी है अतः इस प्रकार के भावुक को भी, श्री राधा की कृपा से, उनकी दासी पद की प्राप्ति निश्चित रूप से होती हैं।

धर्मोयं मानसोस्ति प्रभुवर गृहिणी दासिकायास्तुभावो,
वक्तव्यो नैव वाह्ये न तदनुकरणंस्वे शरीरेथधायँ।
सिद्धः सर्वत्र गीता सकल मुनि जनै भविना या समाना,
श्रीमद्राधा कृपातो नियत मथभवेत्तत्पद प्राप्ति रस्य।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. डेढ़ घंटे
  2. राधावल्लभलाल की प्रकट सेवा का स्थापना-दिन, कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी।
  3. से. वि. 60

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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