श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
उपासना-मार्ग
प्रातः श्री हरि मंगलोत्सववतां मध्यान्ह काले पुन- श्राद्धादिक कर्मों के लिये व्यवस्था दी हुई है ‘अनन्य भक्तों को श्राद्धादिक नहीं करने चाहिये क्योंकि उनकी भगवत शरणागति के द्वारा उनके पूर्वज कृतार्थ हो जाते हैं और यदि उनमें से किसी को प्रेतयोनि प्राप्त होने का सन्देह उपस्थित हो तो प्रतिदिन भगवन्नाम कीर्तन के द्वारा उनको तार देना चाहिये।’[2] श्राद्धादीन्नेवै कुर्यात् हरि शरण वलेनेव पूर्वेकृतार्थाः। श्री ध्रुवदास कहते हैं कि ‘जो लोग श्राद्ध कर्म में कुशल होते हैं वे पितृ लोक को जाते हैं। भक्त तो मुक्ति को भी कुछ नहीं समझता, अन्य लोकों की तो बात ही क्या है? कर्म श्राद्ध में कुशल जे पितृ लोक ते जाँहिं। श्री हित प्रभु के द्वितीय पुत्र श्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी ने पितरों एवं देवताओं को संबोधन करके कहा है ‘आप लोग बलि के सम्वन्ध में मुझ से निराश हो जाँय क्योंकि मेरी बलि[4] के अभिलाषी मुकुन्द भगवान हो गये हैं। इसमें आपकी हानि भी नहीं होती, आप अन्य लोगों से बलि ग्रहण कर लें।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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