श्री भगवान् ने कहा-
कौन्तेय! यह तन क्षेत्र है ज्ञानी बताते हैं यही।
जो जानता इस क्षेत्र को क्षेत्रज्ञ कहलाता वही॥1॥
हे पार्थ! क्षेत्रों में मुझे क्षेत्रज्ञ जान महान तू।
क्षेत्रज्ञ एवं क्षेत्र का सब ज्ञान मेरा जान तू॥2॥
वह क्षेत्र जो, जैसा, जहाँ से, जिन विकारों-युत, सभी।
संक्षेप में सुन, जिस प्रभाव समेत वह क्षेत्रज्ञ भी॥3॥
बहु भाँति ऋषियों और छन्दों से अनेक प्रकार से।
गाया पदों में ब्रह्मसूत्रों के सहेतु विचार से॥4॥
मन बुद्धि एवं महाभूत प्रकृति अहंकृत भाव भी।
पाँचों विषय सब इन्द्रियों के और इन्द्रियगण सभी॥5॥