('<div class="bgmbdiv"> <h3 style="text-align:center">'''श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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<h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | <h4 style="text-align:center">'''भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन'''</h4> | ||
− | [[दुर्योधन]] ने पूछा-'पितामह! सब लोकों के स्वामी एवं पुरुषोत्तम भगवान् वासुदेव के आविर्भाव और स्थिति जानने की मेरे हृदय में बड़ी अभिलाषा है।' [[भीष्म]] पितामह ने कहा-'बेटा! भगवान् श्रीकृष्ण देवताओं के भी देवता हैं। उनके श्रेष्ठ और कोई नहीं है, उनके गुण भी असाधारण गुण हैं-अप्राकृत गुण हैं। मार्कण्डेय ऋषि ने उनको सबसे महान् एवं आश्चर्यमय कहा है। वे सबके अविनाशी आत्मा हैं। सारी सृष्टि के परम कारण हैं। उन्होंने ही सारी सृष्टि को धारण कर रखा है। उन्होंने ही देश, काल, वस्तु और उनके नियमन की सृष्टि की है। संकर्षण, नारायण, ब्रह्मा और शेषनाग भी उन्हीं से पैदा हुए हैं। उन्होंने ही वाराह, नृसिंह, वामन के रुप धारण किये हैं। वही सबके सच्चे | + | [[दुर्योधन]] ने पूछा- 'पितामह! सब लोकों के स्वामी एवं पुरुषोत्तम भगवान् वासुदेव के आविर्भाव और स्थिति जानने की मेरे हृदय में बड़ी अभिलाषा है।' [[भीष्म]] पितामह ने कहा-'बेटा! [[भगवान श्रीकृष्ण|भगवान् श्रीकृष्ण]] देवताओं के भी [[देवता]] हैं। उनके श्रेष्ठ और कोई नहीं है, उनके गुण भी असाधारण गुण हैं- अप्राकृत गुण हैं। [[मार्कण्डेय ऋषि]] ने उनको सबसे महान् एवं आश्चर्यमय कहा है। वे सबके अविनाशी [[आत्मा]] हैं। सारी सृष्टि के परम कारण हैं। उन्होंने ही सारी सृष्टि को धारण कर रखा है। उन्होंने ही देश, काल, वस्तु और उनके नियमन की सृष्टि की है। संकर्षण, [[नारायण]], [[ब्रह्मा]] और शेषनाग भी उन्हीं से पैदा हुए हैं। उन्होंने ही [[वाराह]], नृसिंह, वामन के रुप धारण किये हैं। वही सबके सच्चे सुहृद्, माता-पिता और गुरु हैं। जो उनकी शरण ग्रहण करता है, जिस पर प्रसन्न होकर वे अपनाते हैं, उसका जीवन सफल हो जाता है। [[देवर्षि नारद]] ने उन्हें लोकभावन और भावज्ञ कहा है। मार्कण्डेय ने यज्ञों का यज्ञ, तप का तप और भूत, भविष्य, वर्तमान रुप कहा है। भृगु ने उनको देव-देव और [[विष्णु]] का पुरातन परम रुप कहा है। द्वैपायन व्यास ने उन्हें इन्द्र को स्थापित करने वाला कहा है। महर्षि असित-देवल ने कहा है कि वासुदेव के शरीर से अव्यक्त हुआ है और मन से व्यक्त। सनकादिकों का कहना है कि [[श्रीकृष्ण]] ही पुरुषोत्तम हैं, वही सब ऋषि, महर्षि और धर्मों की मति हैं। बेटा! मैंने तुमसे स्पष्ट रुप से वासुदेव श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन किया है, इससे तुम्हारा अन्त:करण शुद्ध हो और तुम उनकी सेवा करो। मैंने तुम्हें यह भी बतला दिया कि [[अर्जुन]] और श्रीकृष्ण क्यों नहीं जीते जा सकते! श्रीकृष्ण उन पर अत्यन्त प्रसन्न और अनुरक्त हैं, इसलिये तुम उनको जीतने की आशा छोड़कर सन्धि कर लो और सुख से अपना जीवन बिताओ। नर और [[नारायण]] से द्रोह करने का यह परिणाम अवश्यम्भावी है कि तुम्हारा विनाश हो जाये।' |
− | दुर्योधन ने भीष्म पितामह की सारी बात सुनी और उनकी बातों को यथार्थ माना भी। उसने निश्चय किया कि श्रीकृष्ण और पाण्डव हमसे बहुत श्रेष्ठ हैं, फिर भी वह भीष्म की सलाह के अनुसार चेष्टा नहीं कर सका। वह उनके पास से उठकर उन्हें प्रणाम करके अपने शिविर में चला गया, प्रात:काल पुन: युद्ध शुरु हुआ। | + | [[दुर्योधन]] ने भीष्म पितामह की सारी बात सुनी और उनकी बातों को यथार्थ माना भी। उसने निश्चय किया कि [[श्रीकृष्ण]] और पाण्डव हमसे बहुत श्रेष्ठ हैं, फिर भी वह [[भीष्म]] की सलाह के अनुसार चेष्टा नहीं कर सका। वह उनके पास से उठकर उन्हें प्रणाम करके अपने शिविर में चला गया, प्रात:काल पुन: युद्ध शुरु हुआ। |
| style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 67]] | | style="vertical-align:bottom;"| [[चित्र:Next.png|right|link=भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 67]] |
13:53, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनदुर्योधन ने पूछा- 'पितामह! सब लोकों के स्वामी एवं पुरुषोत्तम भगवान् वासुदेव के आविर्भाव और स्थिति जानने की मेरे हृदय में बड़ी अभिलाषा है।' भीष्म पितामह ने कहा-'बेटा! भगवान् श्रीकृष्ण देवताओं के भी देवता हैं। उनके श्रेष्ठ और कोई नहीं है, उनके गुण भी असाधारण गुण हैं- अप्राकृत गुण हैं। मार्कण्डेय ऋषि ने उनको सबसे महान् एवं आश्चर्यमय कहा है। वे सबके अविनाशी आत्मा हैं। सारी सृष्टि के परम कारण हैं। उन्होंने ही सारी सृष्टि को धारण कर रखा है। उन्होंने ही देश, काल, वस्तु और उनके नियमन की सृष्टि की है। संकर्षण, नारायण, ब्रह्मा और शेषनाग भी उन्हीं से पैदा हुए हैं। उन्होंने ही वाराह, नृसिंह, वामन के रुप धारण किये हैं। वही सबके सच्चे सुहृद्, माता-पिता और गुरु हैं। जो उनकी शरण ग्रहण करता है, जिस पर प्रसन्न होकर वे अपनाते हैं, उसका जीवन सफल हो जाता है। देवर्षि नारद ने उन्हें लोकभावन और भावज्ञ कहा है। मार्कण्डेय ने यज्ञों का यज्ञ, तप का तप और भूत, भविष्य, वर्तमान रुप कहा है। भृगु ने उनको देव-देव और विष्णु का पुरातन परम रुप कहा है। द्वैपायन व्यास ने उन्हें इन्द्र को स्थापित करने वाला कहा है। महर्षि असित-देवल ने कहा है कि वासुदेव के शरीर से अव्यक्त हुआ है और मन से व्यक्त। सनकादिकों का कहना है कि श्रीकृष्ण ही पुरुषोत्तम हैं, वही सब ऋषि, महर्षि और धर्मों की मति हैं। बेटा! मैंने तुमसे स्पष्ट रुप से वासुदेव श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन किया है, इससे तुम्हारा अन्त:करण शुद्ध हो और तुम उनकी सेवा करो। मैंने तुम्हें यह भी बतला दिया कि अर्जुन और श्रीकृष्ण क्यों नहीं जीते जा सकते! श्रीकृष्ण उन पर अत्यन्त प्रसन्न और अनुरक्त हैं, इसलिये तुम उनको जीतने की आशा छोड़कर सन्धि कर लो और सुख से अपना जीवन बिताओ। नर और नारायण से द्रोह करने का यह परिणाम अवश्यम्भावी है कि तुम्हारा विनाश हो जाये।' दुर्योधन ने भीष्म पितामह की सारी बात सुनी और उनकी बातों को यथार्थ माना भी। उसने निश्चय किया कि श्रीकृष्ण और पाण्डव हमसे बहुत श्रेष्ठ हैं, फिर भी वह भीष्म की सलाह के अनुसार चेष्टा नहीं कर सका। वह उनके पास से उठकर उन्हें प्रणाम करके अपने शिविर में चला गया, प्रात:काल पुन: युद्ध शुरु हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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