भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 67

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

इसी प्रकार आठवें दिन का युद्ध भी समाप्त हुआ, उस दिन भी पाण्डवों की ही जीत रही। कौरव बड़े चिन्तित हुए। शकुनि, दु:शासन, दुर्योधन, कर्ण ने मिलकर सलाह की कि यदि भीष्म पितामह युद्ध से हट जायें और कर्ण के ऊपर यह सब भार डाल दिया जाये तो कर्ण शीघ्र-से-शीघ्र पाण्डवों को जीत सकता है। कर्ण ने स्वयं ही कहा कि 'भीष्म शस्त्र त्याग कर दें तो मैं अकेला ही पाण्डवों को मार डालूँ।' दुर्योधन यह प्रस्ताव लेकर भीष्म पितामह के पास गया।

दुर्योधन ने भीष्म पितामह से कहा- 'शत्रुनाशन! हम आपके भरोसे पाण्डवों की तो बात ही क्या, सम्पूर्ण देवताओं और दानवों को परास्त करने की आशा करते हैं, आप पाण्डवों को परास्त कीजिये। यदि आप हमारे दुर्भाग्य से उन पर विशेष कृपा रखते हैं और हमसे द्वेष् रखते हैं तो युद्धप्रिय कर्ण को युद्ध करने की आज्ञा दे दीजिये, वह पाण्डवों और उनकी सम्पूर्ण सेना को परास्त करने को तैयार बैठा है। आपकी क्या आज्ञा है?' दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म पितामह लम्बी साँस लेने लगे। उनके मर्मस्थल में गहरा घाव करने की चेष्टा दुर्योधन ने की। फिर भी उन्होंने कोई रुखी बात नहीं कही। उन्होंने कहा- 'दुर्योधन! मैं बड़ी ईमानदारी के साथ अपने प्राणों की परवाह न करके युद्ध कर रहा हूँ, फिर तुम ऐसी बात क्यों कहते हो? अर्जुन ने खाण्डवदाह के समय साक्षात् इन्द्र को जीत लिया था। जब गन्धर्वों ने तुम्हें पकड़ लिया और तुम्हारे भाई तथा कर्ण तुम्हें छोड़कर भाग गये, तब अर्जुन ने अकेले ही उन गन्धर्वों को जीत लिया। विराटनगर में हम सब अर्जुन का कुछ नहीं कर सके, उल्टे वे सब महारथियों के कपड़े उतार ले गये थे। यह उनके पराक्रम का यथेष्ट प्रमाण है। उस समय कर्ण का पराक्रम कहाँ गया था, जब अर्जुन उसके वस्त्र छीन ले गये और उत्तरा को उपहार दिया। नारदादि ऋषि-महर्षि जिन्हें परमात्मा मानते हैं, वे देवाधिदेव श्रीकृष्ण अर्जुन के सहायक हैं। मैं भला अर्जुन को कैसे परास्त कर सकता हूँ? शिखण्डी पर शस्त्र नहीं चला सकता, पाण्डवों को मारना अपने शक्ति से बाहर जानने पर भी मैं अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं करूँगा। जाकर तुम आराम करो, मैं कल महाघोर युद्ध करूँगा। जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक मेरे उस युद्ध की चर्चा रहेगी।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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