भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 68

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

पता नहीं यह कथा किसी पुराण में है या नहीं, परंतु महात्माओं के मुँह से सुनी गयी है, सम्भव है किसी पुराण में हो। वह यह है कि दुर्योधन के बड़े आग्रह से और उसके बार-बार बाध्य करने पर कि 'यदि आप मेरी ओर से सच्चाई के साथ लड़ते हैं तो पाण्डवों को मारने के सम्बन्ध में कोई-न-कोई प्रतिज्ञा कीजिये।' भीष्म पितामह ने अपने तरकश में से पाँच बाण निकाले और प्रतिज्ञा की कि भगवान् की इच्छा हुई तो इन्हीं पाँच बाणों से पाँचों पाण्डवों को मार डालूँगा। कौरवों की सेना में चारों ओर खुशी के नगाड़े बजने लगे, सब लोगों ने सोचा अब तो पाण्डव मर ही गये। क्या भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा भी झूठी हो सकती है? सब ओर लोग युद्ध समाप्ति की आशा से आनन्द मनाने लगे।

यह समाचार गुप्तचरों द्वारा पाण्डवों की छावनी में भी पहुँचा। पाँचों पाण्डव इकट्ठे हुए, वे चिन्ता करने लगे कि अब क्या हो? किस प्रकार भीष्म पितामह की भीषण प्रतिज्ञा से हम लोग बचें। सभी चिन्ता में पड़े हुए थे, अर्जुन के मन में श्रीकृष्ण का भरोसा था, परंतु वे भी कह नहीं सकते थे। द्रौपदी भी वहीं बैठी हुई थी। उसे श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में कई अनुभव थे। जब भी द्रौपदी ने पुकारा, तभी उसकी पुकार सुनी गयी थी। उस दिन भरी सभा में दु:शासन ने उसे नंगी करने की चेष्टा की थी, उसकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण दौड़े आये और उन्होंने वस्त्र बढ़ाकर उसकी रक्षा की। दुर्वासा के भय से जब सारे पाण्डव किंकर्तव्यविमूढ़-से हो गये थे, तब द्रौपदी ने भगवान् श्रीकृष्ण को पुकारा और वे उसी समय नंगे पाँव दौड़े आये तथा उसके बर्तन में का साग का एक पत्ता खाकर दुर्वासा की महान् विपत्ति से पाण्डवों की रक्षा की। श्रीकृष्ण की इस अनन्त कृपा का स्मरण हो जाने के कारण द्रौपदी गद्गद हो गयी और एक प्रकार से निश्चिन्त होकर उसने कहा- 'चिन्ता किस बात की है? हमारे रक्षक श्रीकृष्ण हैं, उनसे ही यह बात क्यों न कही जाये।' श्रीकृष्ण की सहायता का स्मरण होने पर पाण्डवों की सारी चिन्ता घट गयी, वे कृतज्ञ भाव से स्मरण करने लगे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः