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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतनपता नहीं यह कथा किसी पुराण में है या नहीं, परंतु महात्माओं के मुँह से सुनी गयी है, सम्भव है किसी पुराण में हो। वह यह है कि दुर्योधन के बड़े आग्रह से और उसके बार-बार बाध्य करने पर कि 'यदि आप मेरी ओर से सच्चाई के साथ लड़ते हैं तो पाण्डवों को मारने के सम्बन्ध में कोई-न-कोई प्रतिज्ञा कीजिये।' भीष्म पितामह ने अपने तरकश में से पाँच बाण निकाले और प्रतिज्ञा की कि भगवान् की इच्छा हुई तो इन्हीं पाँच बाणों से पाँचों पाण्डवों को मार डालूँगा। कौरवों की सेना में चारों ओर खुशी के नगाड़े बजने लगे, सब लोगों ने सोचा अब तो पाण्डव मर ही गये। क्या भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा भी झूठी हो सकती है? सब ओर लोग युद्ध समाप्ति की आशा से आनन्द मनाने लगे। यह समाचार गुप्तचरों द्वारा पाण्डवों की छावनी में भी पहुँचा। पाँचों पाण्डव इकट्ठे हुए, वे चिन्ता करने लगे कि अब क्या हो? किस प्रकार भीष्म पितामह की भीषण प्रतिज्ञा से हम लोग बचें। सभी चिन्ता में पड़े हुए थे, अर्जुन के मन में श्रीकृष्ण का भरोसा था, परंतु वे भी कह नहीं सकते थे। द्रौपदी भी वहीं बैठी हुई थी। उसे श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में कई अनुभव थे। जब भी द्रौपदी ने पुकारा, तभी उसकी पुकार सुनी गयी थी। उस दिन भरी सभा में दु:शासन ने उसे नंगी करने की चेष्टा की थी, उसकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण दौड़े आये और उन्होंने वस्त्र बढ़ाकर उसकी रक्षा की। दुर्वासा के भय से जब सारे पाण्डव किंकर्तव्यविमूढ़-से हो गये थे, तब द्रौपदी ने भगवान् श्रीकृष्ण को पुकारा और वे उसी समय नंगे पाँव दौड़े आये तथा उसके बर्तन में का साग का एक पत्ता खाकर दुर्वासा की महान् विपत्ति से पाण्डवों की रक्षा की। श्रीकृष्ण की इस अनन्त कृपा का स्मरण हो जाने के कारण द्रौपदी गद्गद हो गयी और एक प्रकार से निश्चिन्त होकर उसने कहा- 'चिन्ता किस बात की है? हमारे रक्षक श्रीकृष्ण हैं, उनसे ही यह बात क्यों न कही जाये।' श्रीकृष्ण की सहायता का स्मरण होने पर पाण्डवों की सारी चिन्ता घट गयी, वे कृतज्ञ भाव से स्मरण करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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