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− | डॉ. ग्रीसर्यन एवं अन्य परवर्ती विद्वानों ने | + | डॉ. ग्रीसर्यन एवं अन्य परवर्ती विद्वानों ने व्यास जी का वृन्दावन-गमन-काल सं. 1612 लिखा है। भक्त कवि व्यास जी' के लेखक इन लोगों का अनुसरण करके इस काल को स्वीकार कर लेते हैं। इसके साथ वे रसिक अनन्य माल के सं. 1591 को भी मानना चाहते हैं। इन दोनों कालों के लम्बे व्यवधान को पाटने के लिये उन्होंने तीर्थ-यात्रा का अनुमान लगाया है, किन्तु इसका वे पर्याप्त ऐतिहासिक आधार नहीं दे सके हैं। सं. 1612 के प्रमाण में लेखक ने लोकेन्द्र व्रजो-त्सव' नामक ग्रन्थ के पद्यांश उद्धृत किये हैं और इस ग्रन्थ का रचना काल सं. 1948 बतलाया है। इसी प्रकार उन्होंने अपने घर के पुराने बस्तों में प्राप्त एक वंश-वृक्ष का हवाला दिया है जिसको वे सं. 1875 के पूर्व का मानते हैं। इस वंश वृक्ष के 'शीर्षक' में लिखा है कि व्यास जी 45 वर्ष की आयु में सं. 1612 में वृन्दावन गये। इनमें से पहिला प्रमाण बहुत आधुनिक है और दूसरा प्रमाण भी प्राचीन नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार के प्रमाणों के बल पर अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में रचे गये 'रसिक अनन्यमाल' के वृत्त पर संदेह नहीं किया जा सकता। |
− | कुछ अन्य लोग भी यह मानते है कि | + | कुछ अन्य लोग भी यह मानते है कि व्यास जी का वृन्दावन गमन सं. 1612 के बाद ही संभव हो सकता है क्योंकि वे राजा मधुकर शाह के गुरु थे और उक्त नृपति सं. 1612 में ओड़छा की गद्दी पर बैठे थे। इस तर्क में यह मान लिया गया है कि मधुकर शाह राजा होने के बाद ही व्यास जी के शिष्य हुए थे। पं. रामचन्द्र शुल्क आदि विद्वानों ने इसी अनुमान पर व्यास जी का वृन्दावन-गमन-काल सं. 1622 के आसपास माना हैं। रसिक अनन्य माल वाले व्यास जी के चरित्र में मधुकर शाह का नामोल्लेख नहीं है। उसमें केवल इतना लिखा है कि व्यास जी के पिता सुकुल सुमोखन के अधीन राजा और प्रजा दोनों थे। |
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सुकुल सुमोखन बडे़ प्रवीन-राजा परजा सबे अधीन।।</poem> | सुकुल सुमोखन बडे़ प्रवीन-राजा परजा सबे अधीन।।</poem> | ||
− | व्यास जी के कई पदों में मधुकर शाह का नाम आता है। संभव है कि जिस प्रकार महाराज | + | व्यास जी के कई पदों में मधुकर शाह का नाम आता है। संभव है कि जिस प्रकार महाराज रुद्रप्रताप सुकुल सुमोखन जी के अधीन थे उसी प्रकार उनके द्वितीय पुत्र मधुकर शाह व्यास जी के अधीन रहे हों। इतिहास से पता चलता है कि राजा रुद्रप्रताप धर्मात्मा व्यक्ति थे और मधुकर शाह उनके साथ अधिक रहते थे। पिता के सड़ग से ही उनमें धर्म-रुचि जाग्रत हुई थी। पिता की मृत्यु के बाद मधु-कर शाह के बड़े भाई भारतीचंद सं. 1588 में गद्दी पर बैठे। मधुकर शाह अपने भाई के यशस्वी राजत्वकाल में शांति पूर्वक भक्ति-साधना में लगे रहे। उन्होंने व्यास जी को राज्य-गुरु के पुत्र होने के नाते अपने पिता के सामने ही गुरु-रूप में वरण कर लिया होगा। महाराज रुद्रप्रताप के स्वर्गवास के तीन वर्ष बाद सं. 1591 में व्यास जी [[वृन्दावन|वृन्दावन]] गये। अत: मधुकर शाह की शिष्यता को लेकर इस काल की प्रामाणिकता को संदिग्ध नहीं कहा जा सकता। |
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01:21, 14 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
कुछ अन्य लोग भी यह मानते है कि व्यास जी का वृन्दावन गमन सं. 1612 के बाद ही संभव हो सकता है क्योंकि वे राजा मधुकर शाह के गुरु थे और उक्त नृपति सं. 1612 में ओड़छा की गद्दी पर बैठे थे। इस तर्क में यह मान लिया गया है कि मधुकर शाह राजा होने के बाद ही व्यास जी के शिष्य हुए थे। पं. रामचन्द्र शुल्क आदि विद्वानों ने इसी अनुमान पर व्यास जी का वृन्दावन-गमन-काल सं. 1622 के आसपास माना हैं। रसिक अनन्य माल वाले व्यास जी के चरित्र में मधुकर शाह का नामोल्लेख नहीं है। उसमें केवल इतना लिखा है कि व्यास जी के पिता सुकुल सुमोखन के अधीन राजा और प्रजा दोनों थे। सुकुल सुमोखन बडे़ प्रवीन-राजा परजा सबे अधीन।। व्यास जी के कई पदों में मधुकर शाह का नाम आता है। संभव है कि जिस प्रकार महाराज रुद्रप्रताप सुकुल सुमोखन जी के अधीन थे उसी प्रकार उनके द्वितीय पुत्र मधुकर शाह व्यास जी के अधीन रहे हों। इतिहास से पता चलता है कि राजा रुद्रप्रताप धर्मात्मा व्यक्ति थे और मधुकर शाह उनके साथ अधिक रहते थे। पिता के सड़ग से ही उनमें धर्म-रुचि जाग्रत हुई थी। पिता की मृत्यु के बाद मधु-कर शाह के बड़े भाई भारतीचंद सं. 1588 में गद्दी पर बैठे। मधुकर शाह अपने भाई के यशस्वी राजत्वकाल में शांति पूर्वक भक्ति-साधना में लगे रहे। उन्होंने व्यास जी को राज्य-गुरु के पुत्र होने के नाते अपने पिता के सामने ही गुरु-रूप में वरण कर लिया होगा। महाराज रुद्रप्रताप के स्वर्गवास के तीन वर्ष बाद सं. 1591 में व्यास जी वृन्दावन गये। अत: मधुकर शाह की शिष्यता को लेकर इस काल की प्रामाणिकता को संदिग्ध नहीं कहा जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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