श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
लेखक ने अपने तीर्थ-यात्रा वाले अनुमान को 'चौरासी-वैष्णव की वार्ता' के एक प्रसंग पर भी आधारित किया है। उन्होंने इस वार्ता को व्यास जी की समसामयिक रचना माना है। सम्बन्धित प्रसंग कृष्णदास अधिकारी की वार्ता में आया है। उसका सारांश यह है कि एक बार कृष्णदास, जो शूद्र थे, द्वारिका से दर्शन करके लौट रहे थे। मार्ग में वे मीराबाई के गांव मैड़ते में ठहरे। वहाँ उन्होंने हरिवंश, व्यास आदि वैष्णवों को कई दिनों से बिदाई की प्रतीक्षा में पड़े देखा। कृष्णदास ने वहाँ पहुँचते ही विदा मांगी और मीराबाई ने कुछ मोहरें श्रीनाथ जी को भेट में देना चाहीं। कृष्णदास ने भेंट लेने से यह कह कर निेषेध कर दिया कि 'तुम महाप्रभु जी की शिष्य नहीं हो'। जब वे आगे चले तो किसी वैष्णव ने उनसे पूछा कि तुमने श्रीनाथ जी की भेंट क्यों फर कर दी? इस पर कृष्णदास ने कहा 'जो भेट की कहा है, परि मीराबाई के यहाँ जितने सेवक बैठे हुते तिन सबनि की नीची करि के भेट फेरी है, इतने इक ठोर कहाँते मिलते। यह हूँ जानैगे जो एक बेर शूद्र श्री आचार्य महाप्रभून कौ सेवक आयौ हुतौ तानै भेट न लीनी तौ तिनके गुरुन की कहा बात होयगी'। यह वर्णन अपनी प्रामाणिकता को स्वयं नष्ट कर देता है और फिर यह भी समझ में नहीं आता कि जिन श्रीहरिवंश ने अपने वृन्दावन-वास के प्रथम दो वर्षो में ही व्रज के राजा नरवाहन जी को एवं ठठ्ठे के सूबेदार राजा परमानंद जी को अपना शिष्य बना लिया था, उनको धन-संग्रह के लिये मीराबाई के पास क्यों जाना पड़ा? और जिन व्यास जी ने यह कहा है कि अपनी बेटी से वेश्यावृति करा कर भी वृन्दावन-वास करना चाहिये, वृन्दावन से अन्यत्र का वैभव-विलास मिथ्या है,[1][2] वे 'विदाई की आशा' में सुदूर मारवाड़ देश में कैसे पहुँच गये? भक्त कवि व्यास जी' के लेखक ने व्यास जी के एक पद के द्वारा इस घटना को प्रमाणित करना चाहा है। इस पद में व्यास जी ने उन भक्तों की भर्त्सना की है जो भूपों के द्वार पर भीख मांगने जाते हैं। [3][4] स्वयं बुरा काम करके उसके लिये दूसरों की निन्दा करना भक्तों का मार्ग नहीं है। यदि व्यास जी लोभवश मीराबाई के द्वार पर सप्ताहों पड़े रहे होते तो यह पद वे कभी नही कहते। व्यास जी ने ओड़छे के राज-द्वार पर खड़े हुए भक्तों की दुर्दशा अपनी नजरों से देखी थी और उसी का सजीव वर्णन इस पद में किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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कनक रतन भूषण वसन मिथ्या अनत विलास।
बेटी हाट सिंगार के बसि वृन्दावन व्यास।। - ↑ व्यास वाणी, पृ. 195
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भक्त ठाड़े भूपनि के द्वार।
उझकत, झुकत, पोरियन डरपत गाय बजाय सुनावत तार।।इत्यादि - ↑ व्यास वा. पृ. 131
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