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01:59, 28 मई 2016 का अवतरण
श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
कुछ अन्य लोग भी यह मानते है कि व्यासजी का वृन्दावन गमन सं. 1612 के बाद ही संभव हो सकता है क्योंकि वे राजा मधुकर शाह के गुरू थे और उक्त नृपति सं. 1612 में ओड़छा की गद्दी पर बैठे थे। इस तर्क में यह मान लिया गया है कि मधुकर शाह राजा होने के बाद ही व्यासजी के शिष्य हुए थे। पं. रामचन्द्र शुल्क आदि विद्वानों ने इसी अनुमान पर व्यासजी का वृन्दावन-गमन-काल सं. 1622 के आसपास माना हैं। रसिक अनन्य माल वाले व्यास जी के चरित्र में मधुकर शाह का नामोल्लेख नहीं है। उसमें केवल इतना लिखा है कि व्यास जी के पिता सुकुल सुमोखन के अधीन राजा और प्रजा दोनों थे। सुकुल सुमोखन बडे़ प्रवीन-राजा परजा सबे अधीन।। व्यास जी के कई पदों में मधुकर शाह का नाम आता है। संभव है कि जिस प्रकार महाराज रूद्रप्रताप सुकुल सुमोखन जी के अधीन थे उसी प्रकार उनके द्वितीय पुत्र मधुकर शाह व्यास जी के अधीन रहे हों। इतिहास से पता चलता है कि राजा रूद्र्प्रताप धर्मात्मा व्यक्ति थे और मधुकर शाह उनके साथ अधिक रहते थे। पिता के सड़ग से ही उनमें धर्म-रूचि जाग्रत हुई थी। पिता की मृत्यु के बाद मधु-कर शाह के बड़े भाई भारतीचंद सं. 1588 में गद्दी पर बैठे। मधुकर शाह अपने भाई के यशस्वी राजत्वकाल में शांति पूर्वक भक्ति-साधना में लगे रहे। उन्होंने व्यास जी को राज्य-गुरू के पुत्र होने के नाते अपने पिता के सामने ही गुरू-रूप में वरण कर लिया होगा। महाराज रूद्रप्रताप के स्वर्गवास के तीन वर्ष बाद सं. 1591 में व्यास जी वृन्दावन गये। अत: मधुकर शाह की शिष्यता को लेकर इस काल की प्रामा-णिकता को संदिग्ध नहीं कहा जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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