विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्यायअसक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः। सर्वत्र आसक्ति से रहित बुद्धिवाला, स्पृहा से सर्वथा रहित, जीते हुए अन्तःकरण वाला पुरुष ‘सन्नयासेन’-सर्वस्व के न्यास की अवस्था में परम नैष्कम्र्य-सिद्धि को प्राप्त होता है। यहाँ सन्यास औरपरम नैकम्र्य-सिद्धि पर्याय है। यहाँ सांख्ययोगी वहीं पहुँचता है, जहाँ कि निष्काम कर्मयोगी। यह उपलब्धि दोनों मार्गियों के लिये समान है। अब परम नैष्कम्र्य-सिद्धि को प्राप्त हुआ पुरुष जैसे ब्रह्म को प्राप्त होता है, उसका संक्षेप में चित्रण करते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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