विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्याययया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च। हे पार्थ! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धारणा के द्वारा निद्रा, भय, चिन्ता, दुःख और अभिमान को भी (नहीं छोड़ता इन सबको) धारण किये रहता है, वह धारणा तामसी है। यह प्रश्न पूरा हुआ। अगला प्रश्न है, सुख- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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