विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टदश अध्याय
शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः। मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्र के अनुसार अथवा विपरीत जो कुछ कर्म आरम्भ करता है, उसके ये पाँचों ही कारण हैं। परन्तु ऐसा होने पर भी- तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः। जो पुरुष अशुद्ध बुद्धि के कारण उस विषय में कैवल्यस्वरूप आत्मा को कर्ता देखता है, वह दुर्बुद्धि यथार्थ नहीं देखता अर्थात् भगवान नहीं करते। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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