यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
षोडश अध्याय
इस अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दैवी और आसुरी दोनों सम्पदाओं का विस्तार से वर्णन किया है। उनका स्थान मानव-हृदय बताया। उनका फल बताया। अतः-
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘दैवासुरसम्पद्विभागयोगो’ नाम षोडशोऽध्यायः।।16।।
इस प्रकार श्रीमद्भवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्रविषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के सम्वाद में ‘दैवासुर सम्पद् विभाग योग’ नामक सोलहवाँ अध्याय पूर्ण होता है।
इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘दैवासुरसम्पद्विभागयोगो’ नाम षोडशोऽध्यायः।।16।।
इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्दजी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘दैवासुर सम्पद् विभाग योग’ सोलहवाँ अध्याय पूर्ण होता है।
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