यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 683

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

पंचदश अध्याय

इस अध्याय में आत्मा की तीन स्थितियों का चित्रण क्षर, अक्षर और अति उत्तम पुरुष के रूप में स्पष्अ किया गया, जैसा इससे पहले किसी अन्य अध्याय में नहीं है। अतः-


ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘पुरुषोत्तमयोगो’ नाम पन्चदशोऽध्यायः।।15।।


इस प्रकार श्रीमद्भवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्रविषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के सम्वाद में ‘पुरुषोत्तमयोगो’ नाम पन्चदशोऽध्यायः।।15।।


इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘पुरुषोत्तमयोगो’ नाम पंचदशोऽध्यायः।।15।।


इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्द जी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘पुरुषोत्तम योग’ पन्द्रहवाँ अध्याय पूर्ण होता है।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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