विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचदश अध्यायततः पदं तत्परिमार्गितव्यं दृढ़ वैराग्य द्वारा संसार-विटप को काटने के परान्त उस परमपद परमेश्वर को अच्छी प्रकार खोजना चाहिये। जिसमें गये पुए पुरुष फिर पीछे संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण निवृत्ति प्राप्त कर लेते हैं। किन्तु उसकी खोज किस प्रकार सम्भव है? योगेश्वर कहते हैं, इसके लिये समर्पण आवश्यक है। जिस परमेश्वर से पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदिपुरुष परमात्म की मैं शरण हूँ (उनकी शरण गये बिना वृक्ष मिटेगा नहीं)। अब शरण में गया हुआ वैराग्य में स्थित पुरुष कैसे समझे कि वृक्ष कट गया? उसकी पहचान क्या है? इस पर कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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