विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दत्रयोदश अध्याय
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्वि सर्वक्षेत्रेषु भारत। हे अर्जुन! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मुझे ही जान अर्थात् मैं भी क्षेत्रज्ञ हूँ। जो इस क्षेत्र को जानता है, वह क्षेत्रज्ञ है- ऐसा उसे साक्षात् जानने वाले माहपुरुष कहते हैं और श्रीकृष्ण कहते हैं कि- मैं भी क्षेत्रज्ञ हूँ अर्थात् श्रीकृष्ण भी एक योगेश्वर ही थे। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ अर्थात् विकारसहित प्रकृति और पुरुष को तत्त्व से जानना ही ज्ञान है, ऐसा मेरा मत है अर्थात् साक्षात्कार सहित इनकी जानकारी का नाम ज्ञान है। कोरी बहहस का नाम ज्ञान नहीं है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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