विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वादश अध्याय
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय। इसलिये अर्जुन! तू मुझमें मन लगा, मुझमें ही बुद्धि लगा। इसके उपरान्त तू मुझमें ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं है। मन और बुद्धि भी न लगा सके, तब? (अर्जुन ने पीछे कहा भी है कि मन को रोकना तो मैं वायु की तरह दुष्कर समझता हूँ) इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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