विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वादश अध्यायक्लेशोऽधिकतरस्तेषाम व्यक्तासक्तचेतसाम्। उन अव्यक्त परमात्मा में आसक्त हुए चित्तवाले पुरुषों के साधन में क्लेश विशेष है; क्योंकि देहाभिमानियों द्वारा अव्यक्त विषयक गति दुःखपूर्वक प्राप्त की जाती है। जब तक देह का भान है, तब तक अव्यक्त की प्राप्ति दुष्कर है। योगेश्वर श्रीकृष्ण सद्गुरु थे। अव्यक्त परमात्मा उनमें व्यक्त था। वे कहते हैं कि महापुरुष की शरण न लेकर जो साधक अपनी शक्ति समझते हुए आगे बढ़ता है कि-मैं इस अवस्था में हूँ, आगे इस अवस्था में जाऊँगा, मैं अपने ही अव्यक्त स्वरूप को प्राप्त होऊँगा, वह मेरा ही रूप होगा मैं वही हूँ। इस प्रकार सोचते, प्राप्ति की प्रतीक्षा न करके अपने शरीर को ही ‘सोऽहं’ कहने लगता है। यही इस मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। वह ‘दुःखालयम् अशाश्वतम्’ में ही घूम-फिरकर खड़ा हो जाता है। किन्तु जो मेरी शरण लेकर चलता है वह- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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