विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दएकादश अध्यायनिष्कर्ष- इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने कहा- भगवन्! आपकी विभूतियों को मैंने विस्तार से सुना, जिससे मेरा मोह नष्ट हो गया, अज्ञान का शमन हो गया; किन्तु जैसा आपने बताया कि मैं सर्वत्र हूँ, इसे मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ। यदि मेरे द्वारा देखना सम्भव हो, तो कृपया उसी स्वरूप को दिखाइये। अर्जुन प्रिय सखा था, अनन्य सेवक था। अतएव योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कोई प्रतिवाद न कर तुरन्त दिखाना प्रारम्भ किया कि अब मेरे ही अन्द खड़े सप्तर्षि और उनसे भी पूर्व होनेवाले ऋषियों को देख, ब्रह्मा और विष्णु को देख, सर्वत्र फैले मेरे तेज को देख, मेरे ही शरीर में एक स्थान पर खड़े तू चराचर जगत् को देख; किन्तु अर्जुन आँखें मलता ही रह गया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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