विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दएकादश अध्याय
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः जैसे नदियों के बहुत से जल-प्रवाह (अपने में विकराल होते हुए भी) समुद्र की ओर दौड़ते हैं, समुद्र में प्रवेश करते हैं, ठीक उसी प्रकार वे शूरवीर मनुष्यों के समुदाय आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। अर्थात् वे अपने में शूरवीर तो हैं; किन्तु आप समुद्रवत हैं। आपके समक्ष उनका बल अत्यल्प है। वे किसलिये और किस प्रकार प्रवेश कर रहे हैं? इसके लिये उदाहरण प्रस्तुत है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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