यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
दशम अध्याय
इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों की मात्र बौद्धिक जानकारी दी, जिससे अर्जुन की श्रद्धा सब ओर से सिमटकर एक इष्ट में लग जाय। किन्तु बन्धुओं! सब कुछ सुन लेने और बाल की खाल निकालकर समझ लेने के बाद भी चलकर उसे जानना शेष ही रहता है। यह क्रियात्मक पथ है।
सम्पूर्ण अध्याय में योगेश्वर की विभूतियों का ही वर्णन है। अतः-
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘विभूतिवर्णनम्’ नाम दशमोऽध्यायः।।10।।
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्यस तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के सम्वाद में ‘विभूति वर्णन’ नामक दसवाँ अध्याय पूर्ण होता है।
इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘विभूतिवर्णनम्’ नाम दशमोऽध्यायः।।10।।
इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्दजी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘विभूति वर्णन; नाम दसवाँ अध्याय पूर्ण होता है।
।।हरिः ऊँ तत्सत्।।
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