यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्ददशम अध्यायतीसरा अनुभव सुषुप्ति सुरा-सम्बन्धी होता है। संसार में सब सोते ही तो हैं। मोहनिशा में सभी अचेत पड़े हैं। रात-दिन जो कुछ करते हैं, स्वप्न ही तो है। यहाँ सुषुप्ति का शुद्ध अर्थ है, जब परमात्मा के चिन्तन की ऐसी डोरी लग जाय कि सुरत (ख्याल) एकदम स्थिर हो जाय, शरीर जागता रहे और मन सुप्त हो जाय। ऐसी अवस्था में वह इष्टदेव फिर अपना एक संकेत देंगे। योग की अवस्था के अनुरूप एक रूपक (दृश्य) आता है जो सही दिशा प्रदान करता है, भूत-भविष्य से अवगत कराता है। ‘पूज्य महाराज जी’ कहा करते थे कि डाक्टर जैसे बेहोशी की दवा देकर, उचित उपचार देकर होश में लाता है ऐसे ही भगवान बता देते हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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