विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायनिष्कर्ष- इस अध्याय में पाँच प्रमुख बिन्दुओं पर विचार किया गया। जिनमें सर्वप्रथम अध्याय सात के अन्त में योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा बीजारोपित प्रश्नों को स्पष्ट समझाने की जिज्ञासा से इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने सात प्रश्न किये कि-भगवन्। जिसे आपने कहा, वह ब्रह्म क्या है? वह अध्यात्म क्या है? वह सम्पूर्ण कर्म क्या है? अधिदैव, अधिभूत और अधियज्ञ क्या हैं और अन्तकाल में आप किस प्रकार जानने में आते हैं कि कभी विस्मृत नहीं होते? योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि जिसका विनाश नहीं होता, वही परब्रह्म है। स्वयं की उपलब्धिवाला परमभाव ही अध्यात्म है। जिससे जीव माया के आधिपत्य से नकलकर आत्मा के आधिपत्य में हो जाता है, वही अध्यात्म है और भूतों के वे भाव जो शुभ अथवा अशुभ संस्कारों को उत्पन्न करते हैं उन भावों का रुक जाना, ‘विसर्गः’-मिट जाना ही कर्म की सम्पूर्णता है। इसके आगे कर्म करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। अतः कर्म कोई ऐसी वस्तु है, जो संस्कारों के उद्गम को ही मिटा देता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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