विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायचन्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्। हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल है, प्रमथन स्वभाववाला है (प्रमथन अर्थात् दूसरे को मथ डालनेवाला), हठी तथा बलवान् है, इसलिये इसे वश में करना मैं वायु की भाँति अतिदुष्कर मानता हूँ। तूफानी हवा और इसको रोकना बराबर है। इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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