विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायशनैः शनैरुपरमेद्बुद्धया धृतिगृहीतया। क्रम-क्रम से अभ्यास करता हुआ उपरामता को प्राप्त हो जाय। चित्त का निरोध और क्रमशः विलय हो जाय। तदनन्तर वह धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके अन्य कुछ भी चिन्तन न करे। निरन्तर लगकर पाने का विधान है। किन्तु आरम्भ में मन लगता नहीं, इसी पर योगेश्वर कहते हैं- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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