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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
पंचम अध्याय
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।16।।
जिसके अन्तःकरण का वह अज्ञान (जिसने ज्ञान को ढँक रखा था) आत्मसाक्षात्कार द्वारा नष्ट हो गया है और इस प्रकार जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसका व ज्ञान सूर्य के सदृश उस परमतत्त्व परमात्मा को प्रकाशित करता है। तो क्या परमात्मा सिकी अन्धकार का नाम है? नहीं, वह तो ‘परम प्रकास रूप दिन राती।’ (रामचरितमानस, 7/119/3)-परम प्रकाशरूप है। है तो, किन्तु हमारे उपभोग के लिये तो नहीं है, दिखायी तो नहीं देता? जब ज्ञान द्वारा अज्ञान का आवरण हट जाता है तो उसका वह ज्ञान सूर्य के सदृश परमात्मा को अपने में प्रवाहित कर लेता है। फिर उस पुरुष के लिये कहीं अन्धकार नहीं रह जाता। उस ज्ञान का स्वरूप क्या है?-
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